सागर सी गहराई
सागर सी गहराई
इश्क में छिपी हुई तेरे सागर की गहराई।
उसी में डूब जाने को सनम मैं इधर आई।
तेरे वादे तेरी कसमें याद अब भी है मुझे।
दिल पर लिखा उन्हें बताने मैं यहाँ आई।
नदी मैं हूँ समंदर तू मेरी पहचान है तुमसे।
भूली रास्ता अपना पहचान भी खो आईं।
मछली भली मुझसे समाई तुझमे रहती है।
सीने से लगकर वे अठखेलियों से लहराई।
बंदिशें ज़माने की धारा का रुख भी मोड़ा।
डिगा सकी न राहों कोई कफ़स न रुसवाई।
हिज़्र में तेरे तड़पे मिलने की आरज़ू दिल में।
महफ़िलों में भटकी बनी अदू मेरी तन्हाई।
सागर तू है सनम मैं एक हूँ नदी अदना सी।
खुशबू जीस्त में शायद मैं कब दूँ महकाई।
होता है शोर यादों का आज भी बेतरह।
हया की लाली गालों पर पकड़े तू जब कलाई।
झूठे ही कोई कह दे मिल जाये सुकूँ दिल को।
अबसार के चिलमन में तेरे रहूँ मैं ही समाई।
स्नेह लता पाण्डेय "स्नेह"
1/8/21
Sanjay Ni_ra_la
30-Aug-2021 01:15 AM
लाजवाब बहुत उम्दा
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Mukesh Duhan
01-Aug-2021 07:27 PM
👏👏👏👏
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